hindisamay head


अ+ अ-

कविता

जाँत और दीपावली

संदीप तिवारी


हर जगह जले थे दीप
बचा था 'जाँत' अकेले खपरैले में,
जब वहाँ अँधेरा
अम्मा ने देखा होगा,
तब वे जरूर रोई होंगी
स्मृतियों में उलझी होंगी
खोई होंगी...
उनकी यादों में तब जरूर
आए होंगे ...वे बीते दिन
जब इसी जाँत को घुमा-घुमा
ढेरों अनाज पीसा होगा
खाया होगा,
उन लोक गीत,
उन लोक धुनों को
जिनको अम्मा ने उठते ही
धीरे-धीरे गाया होगा,
उनका अब कोई एक सिरा
खपरैले के अँधेरे में
अपने करीब पाया होगा,
भीगी आँखों की कोरों को
पल्लू से अपने पोंछ-पोंछ
अम्मा धीरे से बोली थीं...
भइया! एक दिया उधर रख दो, उस चकिया पर...!


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में संदीप तिवारी की रचनाएँ